‘कुकुरमुत्ता‘ स्वतंत्रता पूर्व सन् 1941 में लिखी निराला की बहुचर्चित सामाजिक व्यंग्यात्मक कविता है, जिसका मूल स्वर प्रगतिवादी है। प्रगतिवादी विचारधारा ऐतिहासिक विकास की उपज है। कार्ल मार्क्स ने सामाजिक विषमताओं को एक ऐतिहासिक तथ्य माना है, जिस पर प्रगतिवादियों ने गहन चिंतन किया। ‘कुकुरमुत्ता‘ मूलतः निराला की एक लम्बी कविता है, जिसकी आधारभूमि यथार्थवादी है। कविता में द्वितीय विश्वयुध्द के साथ पनपती हुई सामंती- पूंजीवादी व्यवस्था का चित्रण है।
कविता दो खण्डों में है - प्रथम खण्ड में कुकुरमुत्ता गुलाब पर व्यंग्य करता है और द्वितीय खंड में नवाब की बेटी ‘बहार‘ को उसकी हमजोली ‘गोली‘ ने अपने मां के हाथों बना कुकुरमुत्ते का कबाब खिलाया है जो उसे बहुत पसंद आता है। इस कविता में कुकुरमुत्ता-श्रमिक, सर्वहारा, शोषित वर्ग का प्रतीक या प्रतिनिधि है, तो गुलाब, सामंती, पूंजीपति वर्ग का प्रतीक या प्रतिनिधि है।
‘कुकुरमुत्ता‘ निराला की सामाजिक चेतना, प्रगतिवादी, प्रयोगशील प्रवृत्ति को निरुपित करनेवाली कविता है। कवि ने इस कविता में अपने व्यंग्य का निशाना किसी एक व्यक्ति या वर्ग को नहीं बनाया। वेे तो कभी पूंजीपतियों पर व्यंग्य करते हैं, तो कभी थोथे समाजवादियों पर जो व्यर्थ की बकवास करते हैं। यहीं नहीं उन्होंने अपने समकालीन साहित्यकारों पर भी व्यंग्य किया है। इस कविता में निराला ने भारतीय एवं पश्चिमी संस्कृति के टकराव का चित्रण भी किया है।
एक नवाब थे – बड़े ठाट-बाट वाले। उन्होंने अपनी बाड़ी में बहुत से देशी-विदेशी पौधे लगा रखे थे। उन्होंने फारस से गुलाब मँगाकर बाड़ी में लगवाये थे शं। बहुत से नौकरों-मालियों को उनकी देखभाल के लिए रखा था। फूल-पौधों को ऐसे सजाया उगाया गया था जैसे गजनबी का बाग हो। जहॉं क्यारियों में फारस का 'गुलाब' खिला था, उसी के बगल मे नाले के पास स्वत: उग आने वाला देशी पौधा 'कुकुरमुत्ता' सर ताने खड़ा था। डाल पर इतराते हुए गुलाब को कुकुरमुत्ता आड़े हाथों लेता है औरा उसकी सब शान झाड़ते हुए अपना रंग जमाता है। बाग के बाहर कुछ झोंपड़े पउ़े हुए थे जिनमें अनेक खादिमों के साथ मोना नामक एक बंगालिन मालिन रहती थी। नवाब साहब ने उसे अपने पास आने जाने का गौरव प्रदान कर रखा था। उस मालिन की बेटी गोली और नवाब की बेटी बहार परस्पर सखी भाव रखती थी। एक दिन दोनों बाग में घूमने आई। 'बहार' गुलाबों की बहार देखने लगी, पर गोली कुकुरमुत्ता पर रीझ गई। बहार के पूछने पर गोली ने 'कुकुरमुत्ता का महत्व बताया और कहा कि इसका कबाब बड़ा स्वादिष्ट बनेगा। 'कुकुरमुत्ता' तोड़ लिया गया। गोली की मॉं ने अपने घर कबाब बनाया। इतनी देर दोनों सहेलियॉं राजा-प्रजा का खेल खेलती रहीं। गोली डिक्टेटर बनी और बहार भुक्कड़ फॉलोअर-सी उसके पीछे पीछें। कबाब बहार को बड़ा स्वादिष्ट लगा। उसने अपने घर आकर कुकुरमुता के कबाब की प्रशंसा, नवाब साहब से की। नवाब साहब ने माली को हुक्म दिया, कुकुरमुत्ता लाओ, कबाब बनेगा। माली ने कहा – हुजूर कुकुरमुत्ता अब नहीं रहा, रहे है सिर्फ गुलाब। नवाब साहब क्रोध से कॉंपते हुए बोले- जहॉं गुलाब उगाए गए हैं वहॉं अब कुकुरमुत्ता उगाओ, सबके साथ, मैं भी उसी को चाहता हूँ। माली ने नम्रतापूर्वक कहा- खता मुआफ। कुकुरमुत्ता उगाया नहीं जाता हुजूर।
निराला जी ने इस रचना में ऐय्याश नवाबों, रईसों, पूंजीपतियों या ऐसे शासकों पर व्यंग्य किया है जो स्वयं ऐश्वर्य-विलास में डूबे रहते हैं और किसान, मजदूर, मालियों को मजदूर रखते हैं। ये व्याभिचारी हैं, विदेशी पौधों-वस्तुओं से अपने घर-बाग सजाते हैं, अहंवादी हैं, शोषक हैं। निराला ने शोषक और शोषित वर्ग के बीच प्रतीकों के माध्यम से जिस विसंगति को उभारा है वह कवि के मन में समकालीन वातावरण को देखते हुए चल रहा तनाव है। कवि के मन का यह तनाव अमीर तथा गरीब के बीच पैदा हुए लकीर को उभारता है। फारस का गुलाब उच्च शोषक वर्ग, बुर्जुआ मनोवृत्ति पद्धति और संस्कृति का प्रतीक है। नवाब साहब फारस के इस पौधे को बड़ी हिफाजत से अपने बाग में रखते हैं। कुकुरमुत्ता इस शोषक पूँजीवादियों को फटकारते हुए कहता हैं,
''अबे सुन बे गुलाब
भूल मत, गर पाई खुशबू, रंगो-आब
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतराता है कैपिटलिस्ट,
कितनों को तूने बनाया है गुलाम
माली कर रखा, सहाया जाड़ा घाम।
शाहों राजों, अमीरों का रहा प्यारा,
इसलिए साधारणों से रहा न्यारा।।
गुलाब शाहों, राजाओं, और अफसरों का प्यारा है। वह सर्व-साधारण से किनारा किए रहता है। कितनों को दुबला करके स्वयं मोटा होता है वह। कितनों का शोषण करता है। उसके जीने के ढंग में अहंकार झलकता है।
इसके विपरीत कुकुरमुत्ता सर्व-साधारण का प्रतीक है। ये तो स्वत: ही उगते-पलते हैं। न इन्हें अपनी सेवा के लिए किसी को गुलाम बनाने की जरूरत हैं, न किसी दूसरे का ये शोषण करते हैं। कवि ने 'कुकुरमुत्ता' लम्बी-कविता में तीखी भाषा का प्रयोग किया है।
'गुलाब' के माध्यम से पूँजीपति वर्ग पर कटाक्ष करते हुए कुकुरमुतता की मुखरता इस लम्बी-कविता मे तनाव को उभारती है। तीखे भाषा के प्रयोग से कटु-सत्य को उभारा गया है।
''चाहिए तुझको सदा मेहरून्निसा
जो निकाले इत्र, रू, ऐसी दिशा
बहाकर ले चले लोगों को, नहीं कोई किनारा
जहॉं अपना नहीं कोई भी सहारा
ख्वाब में डूबा चमकता हो सितारा
पेट में डँड पेले हों चूहे, जबॉं पर लफ्ज प्यारा।।
पूरी कविता में बीच-बीच में व्यंग्य के गहरे छींटे कवि के मन के तनाव और विनोदमयी वातावरण को कायम किये रहते हैं। भारत के लोग पश्चिमी आपातति दर्शनों को श्रेष्ठ मानने लगे थे। इस श्रेष्ठता पर तीखा व्यंग्य निराला करते हैं-
''कहीं का रोड़ा, कहीं का पत्थर
टी0एस0 इंलियट ने जैसे दे मारा
पढ़ने वालों ने भी जिगर पर रखकर
हाथ, कहा, 'लिख दिया जहॉं सारा।''
कुकुरमुत्ता के दूसरे खण्ड का आरम्भ नवाब के बाग के बाहर पड़े झोपड़ों की दीन दशा के वर्णन से होता है। निम्मवर्गीय मनुष्यों के दयनीय जीवन के वर्णन को प्रामाणिक बनाने के लिए और अपने मन के द्वन्द्व को बाहर निकालने के लिए अनुपम, अद्वितीय प्रयोग इस लम्बी-कविता में किया है। इससे कविता में उसका प्रमुख तत्व तनाव सृजित हो उठा है-
''जगह गन्दी, रूका सड़ता हुआ पानी
मोरियों में, जिन्दगी की लन्तरानी-
बिलबिलाते कीड़े, बिखरी हड्डियॉं
सेलरों की परों की थी गडि्डयाँ
कहीं मुर्गी, कहीं अण्डे
धूप खाते हुए कण्डे।
''हवा बदबू से मिली।
हर तरह की बासीली पड़ गई।
'कुकुरमुत्ता' लम्बी-कविता वाह्य रूप से तो असम्बद्ध या विश्रृंखल दिखाई पड़ती है किन्तु आतरिक धरातल पर ये विभिन्न तथ्यों, प्रसंगों और सन्दर्भ संकेतों को गूँथकर एक सूत्रता में बॉंधे रखती है। जहॉं पूरी कविता प्रतीक और बिम्ब पर आधारित है वहीं इसमे बैचारिकता भी कवि के मुख से मुखरित होकर विभिन्न आयामों को जन्म देती है। इस तरह से दोनों प्रकार का परस्पर टकरावपूर्ण संयोजन 'कुकुरमुत्ता' की संरचना में एक संतुलित आधार तैयार करता है। 'कुकुरमुत्ता में शोषक वर्ग के प्रति उठाई गई आवाज, निम्न वर्ग (कुकुरमुत्ता) को उसकी क्षमताओं का अहसास कराकर कवि ने अपने नवीन विचार और साहस का परिचय दिया है।
इस रचना में उलझन में डाल देने वाली बात है कुकुरमुत्ता का बड़बोलापन। वह अपनी बहक में अपनी तारीफ के पुल बॉध देता है। वह कहता है कि संस्कृत, फारसी, अरबी आदि सभी भाषाओं के गीत-गजलें, काव्य मुझी से पैदा हुए हैं। सब में मेरा ही गठन है, सब पर मेरा ही रौब-दाब रहता है। मेरा ही रस लेकर आदि कवि वाल्मीकि, कालिदास, व्यास, भास सबने अपने ग्रन्थ रचे। वह कहता है, बलराम का हल, पैराशुट की छतरी, भारत का छत्र, विष्णु का सुदर्शन चक्र, दुनिया की गोलाई, डमरू, तबला, तानपूरा, बालडांस का ढंग, रामेश्वरम और मीनाक्षी के मन्दिर, विक्टोरिया मेमोरियल, गिरिजाघर, गुम्बद आदि सब उसी से ही या उसी की नकल पर निर्मित हुए हैं।
'कुकुरमुत्ता' में विचार तत्व ने आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के साथ ग्रामीण परिवेश, हमारी जीवन-पद्धति, हमारी भावना, हमारे विश्वास और अन्धविश्वास, हृदय, मन, मस्तिष्क और चिन्तन-मनन की बनी बनाई परिपाटी को निश्चित रूप से हिला दिया है। चूँकि चिंतन एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है, विचारों की उत्पत्ति समस्या से होती है और जब तक वह समस्या हल नहीं हो जाती तब तक वह निरंतर क्रियाशील रहती है। 'कुकुरमुत्ता' एक समस्या-प्रधान कविता है जो व्यक्ति, समाज, देश, परिवेश और सभ्यता-संस्कृति के लिए सोचने पर विवश करती है। कुकुरमुत्ता में विचार-प्रक्रिया का एक प्रवाह उपस्थित हुआ है।
व्यक्ति, समाज, राजनीति, मनोविज्ञान, इतिहास, शिक्षण, फैंटेसी, भूत भविष्य, वर्तमान, नीति, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज को कुकुरमुत्ता अपने कथानक में समेटकर चलता है किन्तु उसमें भी ये सभी आयाम-स्थितियॉं एक संवेदनात्मक उद्देश्य को प्रकट करते हैं। जिसके कारण असम्बद्ध प्रसंगों-सन्दर्भो में भी एक सम्बद्धता दिखती है, अनेकरूपता में एकरूपता आ जाती है। कविता के आरम्भ में नाटकीयता नजर आती है जब सर्वहारा वर्ग का प्रतीक कुकुरमुत्ता, पूँजीवादी वर्ग के प्रतीक गुलाब पर नाटकीय अंदाज में व्यंग्य करता है-
''आया मौसिम, फारस का गुलाब,
बाग पर उसका पड़ा था रोबोदाब,
वही गंदे में उगा देता हुआ बुत्ता
पहाड़ी से उठे सर ऐंठकर बोला कुकुरमुत्ता-
अबे सुन बे गुलाब
भूल मत, गर पाई खुशबु, रंगो-आब
खून चूसा खाद का तुने अशिष्ट
डाल पर इतराता है कैपिटलिस्ट''
'कुकुरमुत्ता' अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हुए दार्शनिक शब्दों में, नाटकीय अंदाज में अपनी बात को कहता है। कुकुरमुत्ता बेतुकी और असंगत बातें कहता है।कुकुरमुत्ता में कहे गये इस दार्शनिक तीखे व्यंग्य में नाटकीयता दृष्टिगोचर हो उठी है-
''कहीं का रोड़ा, कहीं का पत्थर
टी0एस0 इलीयट ने जैसे दे मारा
पढ़ने वालों ने भी जिगर पर रखकर
हाथ कहा, 'लिख दिया जहॉं सारा'।
ज्यादा देखने को ऑंख दबाकर
शाम को किसी ने जैसे देखा तारा
जैसे प्रोगेसिव का कलम लेते ही
रोके नहीं रूकता जोश का पारा''
गुस्सा आया कॉंपने लगे नव्वाब
बोले ''चल, गुलाब जहॉं थे, उगा,
सबके साथ हम भी चाहते है अब कुकुरमुत्ता''
बोला माली, ''फरमाऍं मुआफ खता,
कुकुरमुत्ता अब उगाया नहीं उगता।''
कुकुरमुत्ता के अंत में भी नाटकीय अंदाज में नव्वाब और माली का संवाद कविता में नाटकीयता को ऊँचाई देता है। 'कुकुरमुत्ता उगाये नहीं उगता' एक सच्चाई को प्रमाणित करता है। साधारण या सामान्य को पैदा नहीं किया जा सकता।
मार्क्सवादी दृष्टिकोणः- इसे प्रतीक कविता के रूप में देखा गया है। यह सर्वहारा एवं अभिजात्य के बीच संघर्ष की कविता है। लीक लीक पर चलने वाले आलोचकों ने इसमें वर्ग संघर्ष देखा है। कुकुरमुत्ता प्रतीक है सर्वहारा का।
‘‘खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतराता है केपीटलिस्ट’’
कुछ लोगों का मानना है कि यह कविता अभिजात्यता से मुक्ति की कविता है। इसके माध्यम से निराला अपने अभिजात्यता के चाहरदीवारी से बाहर निकलते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह निराला के घर वापसी की कविता है जहाँ निराला का औसत जीवन, सामान्य जीवन है। निराला इसमें सायास अभिजात्यता के तमाम संस्कारों एवं प्रतिमानों को तोड़ने की लड़ाई लड़ते हैं। यह अपने ही काव्य चेतना के रूपांतरण का प्रयास है। इसलिए इस कविता की साधारणता दो स्तरों, नायकत्व के स्तर पर और भाषिक चेतना के स्तर पर दिखाई देती है ।
कुछ लोगों का कहना है कि यह निराला के मोहभंग की कविता है। छायावादी रचनाशीलता के अपर्याप्त पड़ जाने और कविता की नई जमीन की खोज की प्रक्रिया में कुकुरमुत्ता की रचना हुई है वे महसूस करते है कि छाया में जीवन की सच को नहीं कहा जा सकता है इसके लिए नई जमीन चाहिए। यह कुकुरमुत्ता नई जमीन की पड़ताल है। इस कविता का विन्यास एकालाप शैली का है और अपनी आरंभिक्ता में एक आख्यान का आभास देती है। जैसे- ‘‘एक ये नबाब
फारस से मँगाये थे गुलाब .................... ’’।
लेकिन एकालाप शैली कविता के आख्यान शैली को बाद में तोड़ देती है। यह मूल स्थापना है इस कविता को लेकर! दरअसल हिन्दी आलोचना की और मनुष्य की संस्कार की अद्भुत विडम्बना है कि कुछ चीजें स्थापित हो जाती है फिर समाज या व्यक्ति उसे दुहराता रहता है।
कुकुरमुत्ता अगर प्रतीक है तो ऐसी सत्ता, चेतना का जिस चेतना की सर्जनात्मकता खत्म हो गयी है। रामविलास शर्मा मानते है कि - कुकुरमुत्ता में क्रांतिकारी चेतना नहीं है, साथ ही उन्होंने कहा कि इस कविता को मार्क्सवादी संघर्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता। कुकुरमुत्ता की तर्क योजना जिस वर्ग दृष्टि का परिचय देती है वह Proletariat /सर्वहारा का प्रतीक नहीं है यह तो Lumpen Proletariat का प्रतीक है। Lumpen Proletariat सिर्फ बातें करता है संघर्ष नहीं जबकि Proletariat सिर्फ डींगे नहीं हाँकता, संघर्ष करता है।
रमेश कुंतल मेघ ने इसे वर्ग संघर्ष की कविता कहा है। इस कविता के पूर्वार्ध में दो वर्ग है - गुलाब और कुकुरमत्ता का वर्ग एवं उत्तरार्द्ध में भी दो वर्ग है- नवाब की लड़की बहार और माली की लड़की गोली का वर्ग। यह सिद्ध नहीं किया गया है कि इस पूरी संरचना में संघर्ष कहाँ है बहार और गोली का संबंध मैत्री का संबंध है संघर्ष का संबंध नहीं है।
यह कविता किसी भी बनाये गये ढाँचे का अतिक्रमण कर देता है। निराला का भाव विन्यास, शब्द विन्यास बहुत अद्भुत है बहुत चैकन्ने है। इस कविता की वास्तविक चुनौती कविता की परिचित प्रचलित जमीन को तोड़ने की कोशिश है।
शुक्लजी का मानना है कि निराला यथार्थ के विविध आयामों को पकड़ते हैं और श्रृंगारी रचना मिथक को छोड़कर ठेठ समकालीन भिक्षुक संस्कार, प्रार्थना पर भी लिख सकते है। वे हमेशा कविता की बनी बनायी जमीन और दिशाओं को तोड़ने और नयी जमीन को खो जाने का काम करते हैं। निराला भाषा, छंद, बिम्ब, प्रतीक, विषयवस्तु के स्तर बहुत प्रयोगशील है। निराला अपने व्यक्तिगत जीवन की अनेक परछाइयों को कविता का विषय बनाते है। अभावों से भरे हुए जीवन का बदला लेना चाहते हैं एवं संघषों आदि को वे कविता में प्रतिबिम्बित करना चाहते हैं।
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