रीतिकाल की प्रवृत्तियाँ
रीतिकाव्य दरबारी संस्कृति का काव्य है। इसमें श्रृंगार और शब्द-सज्जा पर जोर रहा है। इसमें कविता आम आदमी से जुड़ने के बजाए दरबारो के वैभव एवं विलास से जुड़ गई। उस युग में वीर, नीति और भक्ति की भी कविताएँ लिखी गयी लेकिन वे कविताएँ युग का मुख्य प्रवाह नहीं बन पाती हैं। रीतिकाल की प्रवृत्तियों को दो वर्गो में बाँटा जा सकता है।