अगर जीवन में कोई समस्या आ जाए तो जरूर पढे सुंदरकांड
अगर जीवन में निराशा का कभी दौर आए और जीवन में आगे बढ़ने में समस्या आए तो श्री तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस का सुंदरकांड का पाठ पढ़ने से आपको जीवन में आगे बढ़ने और जीवन की समस्याओं से लड़ने की प्रेरणा मिलेगी |
सुंदरकांड के कुछ प्रमुख अंश
श्री सीता जी की खोज में अंगद के नेतृत्व में खोजी दल जब विशाल समुन्द्र के पास पहुचते है, तो विशाल समुन्द्र को देखकर सभी निराश हो जाते है और विशाल समुन्द्र को पार करने की युति न खोजकर सभी निराशा में डूब जाते है | तभी श्री जाम्बवान जी जो उस खोजी दल में सबसे वरिष्ठ थे, उन्होने श्री हनुमान जी को उनकी शक्ति याद दिलायी कैसे वे अपने बचपन में खेल खेल में एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ में कूद कर चले जाते थे , एक समय वे सूर्य को फल समझ कर खाने के लिए आकाश के तरफ उछल कर चले गए थे | श्री जाम्बवान जी के याद दिलाने पर श्री हनुमान जी को उनकी शक्ति याद आती है | जीवन में भी हम जब निराश हो जाते है तो अपने अंदर के निहित शक्ति को भूल जाते है, इस समय हमे अपने गुरु, माता, पिता, मित्रगण या वरिष्ठ व्यक्तियों से जरूर संपर्क करना चाहिए एवं उनका मार्गदर्शन लेना चाहिए | जीवन में उत्पन्न कठिनाईयों से उबर पाने में केवल एक ही व्यक्ति आप की मदद कर सकता है और वो स्वयं आप है, फिर भी आप को अपने अंदर की शक्तियों को समय-समय पर पहचान खुद से या वरिष्ठ व्यक्तियों के मार्गदर्शन से करनी चाहिए |
सुंदरकांड का प्रथम चौपाई निम्नलिखित है :
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।।
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।।
श्री जाम्बवान जी के द्वारा उनके शक्तियों को याद दिलाने के पश्चात श्री हनुमान जी श्री सीता जी की खोज हेतु समुन्द्र पर करने के लिए चले जाते है |
बीच रास्ते में समुन्द्र देवता की आग्रह पर मेनाक पर्वत के द्वारा उन्हे कुछ समय के लिए विश्राम करने का आग्रह करते है , परंतु श्री हनुमान जी ने कहा रामचन्द्र का काम किए बिना विश्राम कहा | निरंतर अभ्यास से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है, श्री हनुमान जी से यहाँ हमे यह सिख मिलती है |
देवताओ ने जब श्री हनुमान जी को आते हुए देखा तो उनकी परीक्षा लेने हेतु सर्पों की माता सुरसा को भेजा तब सर्पों की माता सुरसा ने अपने आप राक्षस का भेष धारण कर उनके मार्ग में आ गई और श्री हनुमान जी कहा मैं आज तुम्हें खाऊँगी | तब हनुमान जी ने कहा की सीता माता की खोज के पश्चात आप मुझे कहा लेना अभी मुझे श्री रामचन्द्र के कार्य करके लौट आऊ तब मुझे खा लेना परंतु सुरसा नहीं मानी | फिर श्री हनुमान जी ने अपने शरीर का आकार बड़ा कर लिया फिर सुरसा ने भी अपने मुख का आकार बड़ा कर लिया पुन: श्री हनुमान जी ने भी अपना आकार बड़ा कर लिया फिर सुरसा ने भी अपने मुख का आकार बड़ा कर लिया | जैसे जैसे मुख का आकार बढ़ता गया हनुमान जी ने भी अपने शरीर का आकार बढ़ा दिया अंत में हनुमान जी ने अपना शरीर छोटा कर सुरसा के मुह में प्रवेश कर बाहर आ गए | फिर सुरसा अपने वास्तविक रूप में आकार प्रसन्नता जाहीर करते हुए कहा मैंने तुम्हारे बुद्धि बल का भेद पा लिया है , जिसके लिए देवताओ ने मुझे भेजा है | मुसीबत के समय अपने विवेक का प्रयोग शांत होकर करना चाहिए एवं शक्ति के साथ विवेक का समायोजन भी सही ढंग से हो |
फिर समुन्द्र में रहने वाली राक्षसी जो आकाश में उड़ने वाले जीव-जन्तुओ को उनकी परछाई को पकड़ कर खा लेती थी उसकी इस माया को श्री हनुमान जी ने पहचान लिए और उसका वध कर दिया |
श्री हनुमान जी लंका पहुँच जाते है और फिर लंका के जगहों का निरीक्षण एवं अवलोकन करते है | लंका में चारों तरफ से राक्षसों के द्वारा कड़ी पहेरेदारी थी | श्री हनुमान जी रात्री के समय अत्यंत छोटे रूप धारण करके लंका में प्रवेश करते है और लंकनी नामक राक्षस से सामना होने पर उसे एक घूंसा मार दिए , जिससे वह खून की उलटी करती हुई धरती पर लुढ़क गई |
लंका में विभिन्न स्थानों का निरीक्षण करने के पश्चात वे विभीषण से मिले, विभीषण रावण का भाई था और श्री विष्णु जी का भक्त था | श्री हनुमान जी को विभीषण के द्वारा श्री सीता जी का पता चला | फिर हनुमान जी जहा श्री सीता जी थी वहाँ चले गए | श्री सीता जी चारों तरफ से विभिन्न राक्षसों के पहेरेदारी में थी | श्री सीता जी को देखकर उन्हे बहुत दुख हुआ, श्री हनुमान जी वृक्ष पर जाकर छुप गए, उस समय रावण श्री सीता जी को डराने के लिए वहाँ आता है , वाद-विवाद के फलस्वरूप रावण सीता माता को मारने हेतु तलवार निकलता है, श्री हनुमान जी को यह देखकर बहुत क्रोध आया परंतु मंदोदरी जो रावण की पत्नी थी उसने ऐसा करने से माना कर दिया और रावण फिर वहाँ से चला गया | संकट के समय अपाने आप को संयमित रखना चाहिए |
रात के अंधेरे में श्री हनुमान जी श्री सीता जी से मिले एवं श्री राम की सारी बात बताई एवं अपने पहचान के लिए श्री राम जी के द्वारा दी गई अंगूठी भी दिखाई , फिर सीता जी को आश्वासन देकर कहा की श्री राम जी को आप की जानकारी तुरंत ही दूंगा | श्री हनुमान जी को बहुत तेज भूख लगाने के कारण उन्होने सीता जी से वन के फल खाने की इच्छा व्यक्त की और अशोक वाटिका के फल खाए और अशोक वाटिका के वृक्षों को उखाड़ कर फेकने लगे | लंका में जब यह सूचना फैली तो रावण ने बहुत से राक्षसों को उनहे मारने भेजा, श्री हनुमान जी ने सभी को मार गिराया | फिर रावण ने अक्षय कुमार, जो रावण का पुत्र था उसको भेजा, श्री हनुमान जी ने उसका भी वध कर दिया, तब रावण बहुत ही क्रोधित हुआ फिर रावण ने अपने बडे उतर मेधनाथ को श्री हनुमान जी को मारने के लिए भेजा | श्री हनुमान जी और मेघनाथ के बीच भयंकर युद्ध हुआ तत्पश्चात मेधनाथ ने ब्राहमासत्र का प्रयोग किया | ब्राहमबाण लगाने से श्री हनुमान जी मूर्छित हो कर जमीन पर गिर गए | श्री हनुमान जी को हाथ बांधकर रावण के दरबार में ले जाया गया | रावण श्री हनुमान जी पर बहुत क्रोधित हुआ, फिर श्री हनुमान जी श्री राम के दूत बनकर रावण के समक्ष शांति प्रस्ताव रखते हुए कहते है श्री सीता माता को श्री राम को वापस कर दो | रावण क्रोधित होकर श्री हनुमान जी को मृत्यु दंड देता है किन्तु विभीषण एवं अन्य के द्वारा दूत हत्या पाप है इस कारण से रावण ने कहा की श्री हनुमान जी के पूछ में आग लगा दो | आग लगाने के बाद हनुमान जी इधर उधर भागने लगे और सभी जगह लंका में आग लगा दी, फिर श्री सीता जी से मिलकर पुन: समुन्द्र को पार कर डाला |
श्री हनुमान जी ने खोजी दल के नेता अंगद को अपनी सारी बात बताई, सभी श्री हनुमान जी से खुश हुए | सुग्रीव एवं जामवंत श्री राम जी के पास आ कर श्री हनुमान जी की सारी बात बताए, श्री राम एवं लक्ष्मण श्री हनुमान जी से बहुत खुश हुए | चलते समय श्री सीता जी के द्वारा चूडामणी दी जिसे श्री हनुमान जी ने श्री राम जी को दे दिया | श्री हनुमान जी के द्वारा शत्रु (रावण) के ठिकाने एवम असत्र –शत्र से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गई |
जामवंत, अंगद एवं सुग्रीव द्वारा श्री हनुमान जी बहुत बड़ाई की गई , श्री राम द्वारा बार बार यह पूछने पर की श्री हनुमान क्या आपने सीता जी का पता लगाया है तो हनुमान जी कहते नहीं, खीज कर श्री राम कहते है तो क्या मैंने ये किया है ? तो श्री हनुमान जी कहते है जी प्रभु आप ही ने यह सब किया है | आज के समय में जब लोग दूसरे की श्रेय लेने में नहीं हिचकते वही श्री हनुमान जी ने अपने सारी कार्य का श्रेय खोजी दल के सभी सदस्य एवं श्री राम जी को दे दिया |
युद्ध के उद्देश्य से सुग्रीव के द्वारा सेनाओ को इकट्ठा किया गया है, श्री रामचन्द्र के नेतृत्व में सभी सेना बल के साथ सभी लंका के तरफ चले गए | वे सभी युद्ध के उद्देश्य से समुन्द्र के तट पर पहुँच चुके | उधर रावण को यह बात पता चली तो वह बहुत हसा और उस समय उसके भाई विभीषण से इस विषय में वाद विवाद के कारण उसने विभीषण को अपने देश/राज्य से निकाल दिया | विभीषण और उसके कुछ साथी समुन्द्र पार करके जिस ओर श्री रामचन्द्र जी थे, वहाँ श्री रामचन्द्र जी से मित्रता हेतु वहाँ आ गया | सुग्रीव को देखकर श्री हनुमान जी उनहे पहचान गए एवं श्री राम जी ने भी उन्हे अपने यहाँ आश्रय दिए एवं लंका विजय के पश्चात लंका राज्य को विभीषण को देने हेतु दृढ़ संकल्पित हुए |
इधर विशाल समुन्द्र को कैसे पार किया जाए ? इस हेतु अनेक योजनाएँ बनाने के पश्चात समुन्द्र पर विशाल पुल बनाने का निर्णय लिया गया | नल एवं नील की नेतृत्व में पुल बनाने हेतु सभी बानर दल लग गए और समुन्द्र पर एक विशाल पुल का निर्माण हुआ जिसे आज इसे रामसेतु कहते है | रामसेतु, तमिलनाडु, भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य प्रभु श्रीराम व उनकी वानर सेना द्वारा सीता माता को रावण से मुक्त कराने के लिए बनाई गई एक श्रृंखला है।
विश्वास है की आपको यह लेख अच्छा लगा होगा | यदि आप भी जीवन में कभी निराश हुए हो एवं सुंदरकांड पढ़ने से आपको शांति, प्रेरणा एवं अवसाद से मुक्ति मिली हो तो कमेन्ट करके जरूर बताये |
धन्यवाद
जय श्री राम
जय श्री हनुमान
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