किसी भी भाषा की विशेषताओं का अध्ययन चार इकाईयों के स्तर पर किया जा सकता है। -
हिन्दी भाषा में विश्व की सभी भाषाओं में प्रचलित प्रायः सभी ध्वनियाँ विद्यमान है। इसे प्रमुखतः स्वर , व्यंजन, आगत ध्वनियाँ, नव विकसित ध्वनियाँ एवं खंडेतर ध्वनियाँ में बाटा जा सकता है।
स्वर -स्वर वे घ्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में वायु मुख से बिना किसी अवरोध के बाहर निकल जाती है। हिंदी स्वरों का वर्गीकरण निन्नलिखित आधारों पर किया जाता हैः
(क) अग्र स्वर- ई, ई, ए, ऐ, ऍ
(ख) मध्य स्वर- अ
(ग) पश्च स्वर-उ, उ, ओ, औ ऑ
(क) संवृतः मुँह प्रायः बंद या बहुत कम खुलता हो-इ, ई उ, उ
(ख) विवृतः सबसे अधिक खुला हुआ हो-आ
(ग) अर्ध संवृतः संवृत स्थिति की तुलना में अधिक खुलता हो-ए ओ
(घ) अर्ध-विवृतः विवृत स्थिति की तुलना में कम खुलता हो-ऐ, औ
वृत्ताकार- उ, उ, ओ, औ आँ
अवृत्ताकार- अ, आ, इ, ई, ऐ, ऍ
व्यंजन- व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण के लिए किसी अन्य ध्वनि यानि स्वर की सहायता लेनी पड़ती है। व्यंजनों का वर्गीकरण दो आधारों पर किया जाता है। अवरोध किस स्थान पर होता है और अवरोध उत्पन्न करने वाला अंग किस तरह का प्रयत्न करता है।
कंठ्य या कोमल तालव्य - क, ख, ग, घ, ड.
तालव्य - च,छ,ज,झ,
मूर्घन्य -ट,ठ,ड,ढ,ण,ड़,ढ,ष
दन्त्य - त, थ, द, घ, न
वर्त्स्य(दन्तय मूल) - स, ज, र, ल,
औष्ठ्य -प,फ,ब,भ,म
दन्त्योष्ठ्य -व, फ
स्वर तंत्रीय -ह
(क) अवरोध की प्रकृति के आधार पर
स्पर्षीर्ः जब उच्चारण अवयव उच्चारण स्थान का स्पर्श करके वायु का मार्ग अवरूद्ध करता है तब जो व्यंजन उच्चरित होते है स्पर्षी व्यंजन कहे हिंदी में क-वर्ग, ट-वर्ग तथा प-वर्ग के पहले चार व्यंजन स्पर्षी व्यंजन है।
संघर्षीः कुछ व्यंजनों के उच्चारण में उच्चरण अवयव इतना उपर नहीं उठते कि वे उच्चारण स्थान का स्पर्श कर सकें। वे उनके इतने निकट आ जाते है कि वायु दोनों के बी से घर्षण करती हुई निकलती है। ऐसे व्यंजन संघर्षी व्यंजन कहे जाते है। हिंदी में स, श, ष, ह तथा आगत व्यंजन ख, ग, ज तथा फ संघर्षी व्यंजन है।
स्पर्श संघर्षीः जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श तथा घर्षण दोनों प्रयत्न होते हैं, स्पर्श संघर्षी व्यजंन कहे जाते है। च वर्ग के सभी व्यंजन इसी कोटि में आते है।
अंतःस्थ: इस कोटि में अर्ध-स्वर(य तथा व), लुंठित(र) तथा पार्ष्विक (ल) व्यंजन आते है।
उत्क्षिप्त:उच्चारण में जीभ उपर उठकर पहले मूर्धा को स्पर्श करती है और तुरंत झटके से नीचे गिरती है। ड़ तथा ढ़ व्यंजन इसके उदाहरण हैं।
(ख) स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर - जिन व्यंजनों के उच्चारण में झंकार की अनुगूँज (घोष) नही होती है उसे अधोष कहते हैं। जिन व्यंजनों के उच्चारण में झंकार की अनुगूँज (घोष) होती है उसे सधोष कहते हैं। हिंदी में वर्ग के प्रथम दो व्यंजन अघोष तथा शेष तीनों संघोष हैं।
अषोधः क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ
सघोषः ग, घ, ड, ज, झ, ड, ट, ण, द, ध, न, ब, भ, म
(ग) श्वास की मात्रा के आधार पर -अल्प प्राण तथा महाप्राण। जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम मात्रा में श्वास निकलती है अल्पप्राण तथा जिनमें अधिक मात्रा में निकलती है महाप्राण व्यंजन कहे जाते है। हिंदी में वर्ग के प्रथम तथा तृतीय अल्पप्राण तथा द्वितीय एवं चतुर्थ व्यंजन महाप्राण है।
अल्पप्राणः क, ग, च, ज, ट, ड, त, द, प, ब
महाप्राणः ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ
हिंदी की आगत ध्वनियाँ - जो ध्वनियाँ किसी दूसरी भाषा के शब्दों के आ जाने के कारण आ जाती है, आगत ध्वनियाँ कही जाती हैं तथा उन शब्दों को आगत शब्द कहते हैं। हिंदी में भी अरबी, फारसी, तुर्की अंग्रेजी तथा अनेक योरोपीय भाषा के शब्द आ गए है। हिंदी में इन आगत ध्वनियाँ के लिए नए वर्ण भी विकसित कर लिए गए हैं। ये इस प्रकार हैः
आगत स्वर उदाहरण
ऍ -कैप, मैप, पैन आदि
ऑ - कॉफी, टॉफी, शॉप, बॉल
आगत व्यंजनों के लिए वर्णमाला में परंपरागत वर्णो के नीचे बिंदी लगाकर चिन्ह विकसित किए गए है।
ये वर्ण है- क़ ख़ ग़ ज़ तथा फ़।
हिन्दी की नव विकसित ध्वनियाँ -हिंदी में कुछ ऐसी ध्वनियाँ भी है, जो संस्कृत में नहीं थी। ये किसी अन्य भाषा के प्रभाव से न आकर स्वतः विकसित हुई है। ये हिंदी के संरचनात्मक विकास का परिणाम है। ये हैः ड़, ढ़, न्ह म्ह तथा अनुनासिक स्वर
खंडेतर ध्वनियाँ - कुछ ऐसी घ्वनियाँ भी होती हैं जिनके खंड करना संभव नही होता। ऐसी ध्वनियों को खंडेतर ध्वनियाँ कहा जाता हैं बलाघात, अनुतान, अनुनासिकता, मात्रा संहिता आदि ऐसी ही खंडेतर ध्वनियाँ है।
शब्द ध्वनि के उस समूह को कहते है जिसका कोई विशेष अर्थ हो। हिन्दी की शब्द संरचना का अध्ययन मुख्यतः दो आधारों पर हो सकता है -
(क) निर्माण की दृष्टि से।
(ख) श्रोत की दृष्टि से।
(क) निर्माण की दृष्टि से शब्दों को तीन प्रकारों का माना जाता है -
1. रूढ़ शब्द: ये वे शब्द है जिनकी ध्वनियाँ को अलग करके कोई अर्थ नहीं निकाला जा सकता है ऐसे शब्द हैं जिनकी व्युत्पति ज्ञात न हो जैसे हाथ, पेट, किताब।
2. यौगिक शब्द: ये वे शब्द हैं जो दो या दो से अधिक रूढ़ शब्दों से मिलकर बनते हैं तथा जिनका अर्थ दोनों के अर्थ जुड़ने से निर्धारित होता है जैसे पुस्तकालय, हथगोला।
3. योगरूढ़ शब्द - संरचना की दृष्टि से यौगिक हैं किन्तु जिनका अर्थ एक विशेष रूप में रूढ़ हो चुका है। जैसे पंकज का कमल।
(ख) श्रोत की दृष्टि से - तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज
कुछ ऐसी युक्तियाँ है जो खुद शब्द तो नहीं है किन्तु शब्दों के निर्माण में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अ) उपसर्ग
ब) प्रत्यय
स) संधि एवं समास
शब्द जब व्याकरण सम्मत नियमों के आधार पर किसी व्याकरणिक कोटि के रूप में निश्चित स्थान ग्रहण कर लेता है तो पद बन जाता है जैसे - राम ने रावण को मारा। ये सभी शब्द हैं किंतु ‘राम ने रावण को मारा’ वाक्य में ये पॉँचों पद बन गए हैं। इनका स्थान परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
हिन्दी में पदों का वर्गीकृत दो भागों में किया गया है -
(क) विकारी पद।
(ख) अविकारी पद।
(क) विकारी पद - ये वे पद हैं जो लिंग, वचन या काल आदि के परिवर्तन से बदल जाते हैं। हिन्दी में चार प्रकार के विकारी शब्द मिलते हैं।
अ) संज्ञा।
आ) विशेषण।
इ) सर्वनाम।
ई) क्रिया।
(ख) अविकारी पद - ये पद वे पद हैं जो किसी भी स्थिति में परिवर्तित नहीं होते हैं।
अ) क्रिया विशेषण।
आ) योजक या समुच्चय बोधक।
इ) सम्बन्ध बोधक।
ई) विस्मयादि बोधक।
संज्ञा - ये वे शब्द हैं जो किसी प्राणी, व्यक्ति, स्थान, वस्तु या भाव के नाम को व्यक्त करते हैं। संज्ञाएं तीन प्रकार की होती है -
जातिवाचक, भाववाचक तथा व्यक्तिवाचक।
सर्वनाम - वे शब्द या पद है जो सभी संज्ञाओं के स्थान पर आ सकते हैं। हिन्दी में प्रायः छः प्रकार के सर्वनाम निश्चित किए गए हैं -
1. पुरूषवाचक
उत्तम पुरूष : मैं / हम
मध्यम पुरूष : तू / तुम
अन्य पुरूष : वह / वे
2. प्रश्नवाचक : कौन/क्या/कहाँ
3. संबंधवाचक : जो/सो
4. निश्चयवाचक : यह/वह
5. अनिश्चयवाचक : कुछ/कोई
6. निजवाचक: अपनी/अपना
विशेषण - वे पद हैं जो किसी अन्य पद की विशेषता व्यक्त करते हैं। हिन्दी में चार प्रकार के विशेषण स्वीकार किए गए हैं।
1. गुणवाचक: अच्छा, छोटा, मोटा।
2. सार्वनामिक: कितना, उतना।
3. परिमाण बोधक: जोड़ा, कुछ, कम।
4. संख्यावाचक: एक, दो, पाँच।
क्रिया - क्रिया वाक्य का वह पद है जिसमें किसी कार्य का करना या होना बताया जाता है। क्रिया कर्म के साथ है या नहीं इस आधार पर दो प्रकार की क्रियाएं मानी गई है। सकर्मक क्रिया तथा अकर्मक क्रिया।
सकर्मक क्रिया कर्म के साथ आती है। जैसे - राम ने रावण को मारा।
अकर्मक क्रिया जिसके साथ कोई कर्म नहीं होता है। जैसे - राम जाता है।
क्रियाएं लिंग, वचन, पुरूष, वाच्य, काल एवं भाव या अर्थ के आधार पर बदलती है।
लिंग और वचन हिन्दी पद संरचना को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं।
लिंग - हिन्दी में केवल दो ही लिंग स्वीकार किए गए हैं।
स्त्रीलिंग - विशेष रूप से अकारान्त तथा ईकारान्त।
पुलिंग - आ, ई, इका, इया, नी, आनी, इन, आइन, प्रत्ययों को छोड़कर शेष सभी पुल्लिंग होते हैं।
वचन - हिन्दी में दो वचन स्वीकार किए गए हैं। एक वचन एवं बहुवचन।
आमतौर पर वचन परिवर्तन के नियम
1. आकारान्त पुल्लिंग में आ के स्थान पर ए का प्रयोग
लड़का - लड़के
2. आकारान्त को छोड़कर अन्य पुल्लिंग एकवचन शब्द बहुवचन के भी प्रायः परिवर्तन नहीं होते।
घर - घर
बालक - बालक
3. स्त्रीलिंग एकवचन इकारान्त शब्द बहुवचन में ई के स्थान पर इयाँ प्रत्यय से समाप्त होते हैं।
लड़की - लड़कियाँ
बेटी - बेटियाँ
4. इकारान्त स्त्रीलिंग शब्द में यॉ प्रत्यय लगाकर बहुवचन बनाया जाता है।
पद्धति - पद्धतियाँ
रीति - रीतियाँ
वाक्य सार्थक शब्दों का एक ऐसा समूह है जो किसी अभिप्राय को सम्पूर्णतः व्यक्त करने में सक्षम होता है। हिन्दी में वाक्य संरचना से संबंधित कुछ तथ्य इस प्रकार हैं -
1. हिन्दी में संरचना के आधार पर तीन प्रकार के वाक्य माने गए हैं।
(क) सरल वाक्य।
(ख) संयुक्त वाक्य।
(ग) जटिल या मिश्र वाक्य।
(क) सरल वाक्य - सरल वाक्य वे हैं जिनमें एक उद्देष्य व एक विधेय होता है।
जैसे भारत हर क्षेत्र में विकास चाहता है।
(ख) संयुक्त वाक्य - संयुक्त वाक्य ऐसा वाक्य है जिसमें दो स्वतंत्र वाक्यों को किसी योजक शब्द के माध्यम से जोड़ दिया जाता है तथा ये दोनों मिलकर एक व्यापक अर्थ की सृष्टि करते हैं। जैसे - मैं कल आने वाला हूँ, अतः तुम कार्यालय न जाना।
(ग) जटिल या मिश्र वाक्य - जटिल या मिश्र वाक्य वे हैं जिनमें एक प्रधान उपवाक्य होता है तथा एक पर अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं। इनमें से कोई भी स्वतंत्र वाक्य नहीं होता। अतः ये सब मिलकर ही अर्थ को अभिव्यक्त कर पाते हैं जैसे - मैं इस बात की सूचना आपको देना चाहता था लेकिन बीमार पड़ गया और न तो आपको सूचित कर सका न ही पत्र लिख पाया।
2. हिन्दी वाक्य संरचना में कर्त्ता के बाद कर्म व फिर क्रिया का स्थान होता है।
3. हिन्दी वाक्यों में परसर्गों के प्रयोग के संबंध में संज्ञा और सर्वनाम के लिए अलग-अलग नियम हैं।
4. यदि किसी वाक्य में भिन्न-भिन्न लिंग और वचन वाली संज्ञाएँ एक साथ हो तो क्रिया का निर्धारण केवल अंतिम संज्ञा के आधार पर होता है।
5. आदर सूचक शब्दों में बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। पद्धति के आधार पर हिंदी के वाक्यों को कुछ मांगो में विभाजित किया जा सकता है।
हिन्दी व्याकरिक संरचना मूलतः संस्कृत व्याकरण के ढ़ाँचे का सरलीकरण है किंतु विकास की प्रक्रिया में इसने कई अन्य परंपराओं से भी प्रभाव ग्रहण किए हैं। कुछ विशेषताएं ऐसी भी हैं जो विकास की प्रक्रिया में स्वतः उद्भूत हुई है।
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